जय बद्री विशाल ,
अप्रत्याक्षाणि शास्त्राणि विवादस्तत्र केवलं
प्रत्यक्षं ज्योतिषं शास्त्रं चंद्रार्को यत्र साक्षिनों.
अनादि काल से मानव अज्ञात एवं अगोचर को जानने के लिये संवेदनशील एवं जिज्ञासू रहा है मानव की इसी जिज्ञासा प्रवृत्ति के कारण चिंतनशील प्रबुद्ध मनीषियों ने अपने परिवेश से सहस्रों मील दूर संचरणशील ग्रह नक्षत्र एवं ताराओं के स्वरुप एवं उनके पारस्परिक प्रभावों का गहन निरीक्षण .अध्ययन एवं चिंतन प्रारंभ किया .मानव जीवन को सुव्यवस्थित रूप प्रदान करने के लिये ऋषियों ने अध्यात्म एवं वैदिक ज्ञान ,दर्शन शास्त्र ,संगीत ,आयुर्वेद ,ज्योतिष आदि शास्त्रों का प्रणयन किया .
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जातक के जन्म समय सौर-मंडल एवं जन्म कुण्डली में जिस प्रकार के ग्रहों की स्तिथि होती है उसी के अनुसार मनुष्य का जीवन प्रभावित होता रहता है .
ग्रहाधीनं जगत्सर्वं ग्रहाधीना नरावरा:
सृष्टि रक्षण संहारा: सर्वे चापि ग्रहानुगा:.
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार ग्रहों के द्वारा निर्मित योगो का शुभ और अशुभ किस तरह मिलेगा इसका संक्षिप्त वर्णन देखिये .
१-जन्म कुण्डली में लग्न व् सप्तम भाव में सब ग्रह जब स्थित होते है तब शकट योग बनता है .इस योग का मनुष्य गाड़ी भाड़े से चलाकर अपनी आजीविका साध्य करता है किन्तु रोगी रहता है और पत्नी मानी ,विपरीत स्वभाव कृष् एवं कृपण होती है .
२-जन्म कुण्डली में चन्द्रमा से १२ वें व् दूसरे भाव में यदि एक भी ग्रह न हो तो उसे केमद्रुम योग कहते है ऐसे योग वाले व्यक्ति से लक्ष्मी का सदैव वियोग बना रहता है जो उसे निर्धन बनाता है .
३-जन्म कुण्डली में सूर्य और चन्द्रमा की युति हो अथवा दृष्ट हो तो व्यक्ति कार्यकुशल होता है लेकिन अल्प कपटपन रहता है .
४-जन्म कुण्डली में सूर्य-मंगल की युति हो अथवा दृष्ट हो तो व्यक्ति पुरुषार्थी ,शीघ्र क्रोधी ,साहसी रहता है .
५-जन्म कुण्डली में सूर्य और गुरु का योग हो तो व्यक्ति संपन्न ,चतुर होता है .
शुभम भूयात
पंडित विपिन कृष्ण शास्त्री
ज्योतिषी, वेद पाठी एवं कथा वाचक
Pandit Vipin Krishna Shastri
Jyotishi, Ved Pathi Avam Katha Vaachak
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