ग्रह
अपने निरंतर भ्रमण में विभिन्न स्थितियों में पहुचते है और यही स्थितियां ग्रहों की अवस्थायें कहलाती हैं.प्रत्येक अवस्था का अपना-अपना फल होता है और कुण्डली विश्लेषण के समय ज्योतिषी को इन अवस्थाओं का विशेष ध्यान रखना चाहिए .
१-दीप्तावस्था
२-स्वस्थ अवस्था
३-मुदित अवस्था
४-शांत अवस्था
५-शक्त अवस्था
६-पीड़ित अवस्था
७-दीन अवस्था
८-विकल अवस्था
९-भीत अवस्था
१०-खल अवस्था
१-दीप्तावस्था ---जब ग्रह अपनी उच्च राशि में रहता है तो वह दीप्त होता है इस स्थिति में जातक को धन लाभ ,अपने से बड़ों से सम्मान प्राप्त होना,ख्याति मिलना और संतान सुख मिलना ये फल मिलते देखे गए है .
२-स्वस्थ अवस्था ---जब ग्रह अपनी ही राशि में भ्रमण करता है तो वह ग्रह की स्वस्थ अवस्था कहलाती है इस स्थिति में जातक को पूर्ण सम्मान व् उच्च पद मिलना ये देखे गए है .
३-मुदित अवस्था -----ग्रह मुदित तब होता है जब वह अपने मित्र ग्रह की राशि में भ्रमण करता है .
४-शांत अवस्था --यदि कोई ग्रह शुभ वर्ग में हो अर्थात नवांश आदि कुंडलियो में शुभ हो तो वह ग्रह की शांत अवस्था कहलाती है ऐसा ग्रह शुभ फलदायी होता है .
५-शक्त अवस्था ---ग्रह जब पूर्ण विम्ब वाला ,उदित रहता है तो वह ग्रह की शक्त अवस्था कहलाती है .
६-पीड़ित अवस्था ---जब ग्रह कुण्डली में कमजोर हो ,बलहीन हो, कम किरणों वाला हो तो वह ग्रह पीड़ित कहलाता है .
७-दीन अवस्था ---जब ग्रह कुण्डली में अपने नैसर्गिक शत्रु की राशि में रहता है तो वह ग्रह की दीन अवस्था कहलाती है .
८-विकल अवस्था ---जब कोई ग्रह कुण्डली में सूर्य की किरणों से अस्त हो तो वह ग्रह की विकल अवस्था कहलाती है और ग्रह अशुभ फल प्रदान करता है .
९-भीत अवस्था ---जब कोई ग्रह अपनी नीच राशि में भ्रमण करता है तो वह ग्रह की भीत अवस्था कहलाती है
१०-खल अवस्था --जब कोई ग्रह पाप ग्रहों के वर्ग में रहता है तो ग्रह खल होता है अर्थात होरा द्रेष्काण आदि वर्गों में ग्रह पाप ग्रह की राशि में रहता है तो वह खल अवस्था में होता है .ऐसे ग्रह धन हानि करते है और कभी -कभी तो कोर्ट कचहरी तक भी पंहुचा देते है ऐसे फल देखने में आये है.
शुभम
भूयात
Jyotishi, Vedpathi & Katha Vachak
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