काल से लेकर आजतक ये तारे अपने स्थान पर
स्थित हैं इसलिए इन्हें स्थिर अथवा निश्चल कहते हैं
न सरति
तत् नक्षत्रम
फलित वर्तते समय सर्व प्रथम नक्षत्र का विचार किया जाता है
१-अश्वनी
२-भरणी
३-कृतिका
४-रोहणी
५-मृगशिरा
६-आर्द्रा
७-पुनर्वसु
८-पुष्य
९-अश्लेषा
१०-मघा
११-पूर्वा फाल्गुनी
१२-उत्तरा फाल्गुनी
१३-हस्त
१४-चित्रा
१५-स्वाति
१६-विशाखा
१७-अनुराधा
१८-ज्येष्ठा
१९-मूल
२०-पूर्वाषाढा
२१-उत्तराषाढा
२२-श्रवण
२३-धनिष्ठा
२४-शतभिषा [शत तारका ]
२५-पूर्वा भाद्रपद
२६-उत्तरा भाद्रपद
२७- रेवती
इस प्रकार से इन सत्ताईश नक्षत्रों के सिवाय अभिजित नाम एक नक्षत्र और
है लेकिन इसकी गणना नक्षत्रों की कक्षा में नहीं की गई है क्योकि चन्द्रमा जिस
मार्ग से आकाश में भ्रमण करता है उस मार्ग से यह नक्षत्र उत्तर दिशा में बाहर की
ओर होने के कारण चन्द्र नक्षत्रो में इसका वर्णन नहीं किया जाता है
नक्षत्रों में शुभ ओर अशुभ नक्षत्र भी होते हैं इसलिए प्रत्येक कार्य
को करने के लिये इनका विचार करना परम आवश्यक है .
२७ नक्षत्रों में १८ नक्षत्र शुभ माने गये हैं ओर बाकी ९ नक्षत्र –भरणी
,कृत्तिका ,आर्द्रा,आश्लेषा,मघा,ज्येष्ठा ,मूल,धनिष्ठा ,शतभिषा [शततारका ] ये अशुभ
माने गये हैं अत:इसका विचार अवश्य कर लेना चाहिए.
क्रमश: जारी......
शुभम भूयात
पंडित आचार्य विपिन कृष्ण शास्त्री
Pandit Acharya Vipin Krishna Shastri
Hindu Priest & Astrologer
श्री मान जी... एक नक्षत्र 13 अंश 20 कला का होता है न कि जैसा आपने लिखा है 12 अंश 20 कला का...
ReplyDeleteऔर यह दूरी है न कि समय मापक..