Sunday, 13 December 2015
Wednesday, 9 September 2015
ग्रह योग और फलित
कुण्डली के प्रत्येक भाव अपनी अपनी दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं और इन्ही
द्वादश भावों में स्थित ग्रहों के शुभ या अशुभ
स्थिति से मनुष्य अपने जीवन काल में
सुख और दुःख का सामना करता रहता है ग्रहों की युति ,दृष्टि के अनुसार कुण्डली में
जो शुभ और अशुभ योग बनते हैं जिनके कारण व्यक्ति बुलंदियों को भी छू लेता है और जब
ग्रह स्थिति और योग अशुभ हो तो बुलंदियों को पाने वाला व्यक्ति भी दर दर भटकने
लगता है.
Astrologer- Vipin Krishna Kandpal |
ऐसे ही कुछ योगों की चर्चा यहाँ पर की जा रही है इन्हें समझने का
प्रयास करें.
आश्रय योग – कुण्डली में लग्न
भाव का मालिक चर राशि में स्थित हो और कुण्डली में अधिकतर ग्रह चर राशि में हो तो
आश्रय योग बनता है
फलश्रुति – ऐसा जातक महत्वाकांक्षी होता है तथा नाम,सम्मान प्रतिष्ठा के लिये जगह जगह भ्रमण करता है .बौद्धिक रूप से गतिशील होता है ऐसा जातक लगातार संघर्ष करता रहता है लेकिन फिर भी सफलता नही मिल पाती है.
अव योग- कुण्डली में जब लग्नेश अशुभ भाव में रहता है तब
अवयोग बनता है .
फलश्रुति-
अप्रसिद्धि रति दु:सहदैन्यं स्वल्पमायुरवमानमसद्भि
संयुत:कुचरित:कृतनु:स्याचंचलस्थितिरिहाप्यवयोगे
संयुत:कुचरित:कृतनु:स्याचंचलस्थितिरिहाप्यवयोगे
फलदीपिका के अनुसार ऐसा जातक बहुत चंचल होता है ऐसा व्यक्ति दुष्ट
लोगों के संसर्ग में रहता है तथा अपने चरित्र को भी नष्ट कर देता है तथा ऐसे जातक
के जीवन में निर्धनता बनी रहती है जातक कहीं न कहीं अपमानित होता है.
राजयोग – केतु ग्रह केन्द्र या त्रिकोण में हो या
केन्द्र या त्रिकोण के स्वामी के साथ हो तो योग कारक होता है .
फलश्रुति-
यदि केंद्रे त्रिकोणे वा निवसेतां
तमोग्रहो
नाथेनान्यतरेणापि सम्बन्धाद्ध्योग कारको.
नाथेनान्यतरेणापि सम्बन्धाद्ध्योग कारको.
ऐसा जातक उच्च पद पर आसीन होता है .जीवन में उसे सफलता ,सम्मान
,प्रतिष्ठा मिलती है या यों कहें कि वह
व्यक्ति प्रतिष्ठित होता है.
सर्वार्थ चिंतामणि के अनुसार –जो ग्रह जन्म कुण्डली में नीच का हो तथा
उसके उच्च राशि का स्वामी अथवा जिस राशि में वह वैठा है उसका स्वामी केन्द्र में
स्थित हो तो राजयोग बनता है .
नीचस्थितो जन्मनियोग्रह: स्यात्तद्राशिनाथोथ तदुच्चनाथ
सचेद्विलग्नाद्द्यदि केन्द्रवर्ती राजा भवेद धार्मिक चक्रवर्ती
सचेद्विलग्नाद्द्यदि केन्द्रवर्ती राजा भवेद धार्मिक चक्रवर्ती
पंचम भाव का मालिक गुरु से दृष्ट हो कर केन्द्र या त्रिकोण में स्थित हो तो संतान योग
बनते हैं
पंचम भाव का मालिक पंचम भाव में स्थित हो तथा गुरु से दृष्ट हो तो
गुणवान संतान का लाभ मिलता है.
आगे क्रमश...
शुभम् भूयात...
Acharya Pandit
Vipin Krishna Kandpal
Vedic Astrologer and Shrimad Bhagwat Katha Vachak
Vedic Astrologer and Shrimad Bhagwat Katha Vachak
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Thursday, 27 August 2015
ज्योतिष में केतु ग्रह का जातक पर प्रभाव
केतु एक छाया ग्रह है केतु मंडल ध्वजाकार है मनुष्य के शरीर में केतु
अग्नि तत्व का प्रतिनिधित्व करता है केतु ग्रह के सूर्य और चन्द्रमा शत्रु हैं.
जन्म कुण्डली में प्रथम लग्न भाव ,षष्ठम भाव ,अष्ठम भाव ,और एकादश भाव
में केतु ग्रह को शुभ नहीं माना जाता है. कुण्डली में केतु ग्रह के द्वारा जब जातक
पीड़ित रहता है तो जातक के व्यवहार में विकारता दिखाई देने लगती है जातक के मन
दुराचार की भावना प्रबल हो जाती है, वात
कफ जन्य रोग से जातक पीड़ित रहता है. कुण्डली में जिस भी भाव में केतु रहता
है उसी भाव के अनुरूप केतु अपना अच्छा और बुरा प्रभाव अवश्य डालता है. जीवन को
संघर्षमय बना देता है. यह एक ऊष्ण और तमोगुणी ग्रह है और केतु की मीन और धनु उच्च
राशियाँ हैं. केतु के कुप्रभाव से जोड़ों में दर्द,संतान कष्ट,पारिवारिक कलह,पेशाब
संबधित विकार से जातक पीड़ित रहता है.
कुण्डली में केतु और सूर्य ग्रह की युति होने से व्यवसाय में उतार
चढ़ाव देखने को मिलता है. जातक के पिता के
स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है. यश
सम्मान, प्रतिष्ठा और सुख में कमी आती है.
चन्द्रमा और केतु की युति होने से मानसिक तनाव बढ़ता है.
केतु और मंगल की युति होने से जातक के अंदर क्रोध की अधिकता, हिसा की
प्रवृति दिखाई देने लगती है.
केतु और बुध की युति होने से जातक के अंदर कपट की भावना बढ़ने लगती है
और जातक धर्म कर्म से हीन होकर
नास्तिक बन जाता है.
केतु और गुरु की युति होने से जातक के नास्तिकता बढ़ने लगती है और जातक
के अंदर सत्वगुण में कमी आने लगती है.
केतु और शुक्र की युति होने से जातक के अंदर स्त्री लोलुपता की भावना बढ़ने लगती है.
केतु और शनि की युति होने से जातक के अंदर हिसक प्रवृत्ति बढ़ने लगती
है और जातक आत्मघाती भी बनने लगता है.
इसलिए केतु ग्रह से यदि कोई पीड़ित हो तो किसी अच्छे विद्वान से
कुण्डली का विश्लेषण अवश्य करवाएं
केतु ग्रह की शान्ति के लिये उपाय
केतु ग्रह के मन्त्र का अवश्य जाप करें. हनुमान जी की उपासना करें. मंगलवार
का व्रत रखें अन्यथा सर्वारिष्ट शान्ति हेतु शिवार्चन और महा मृत्युंजय का जाप
करें.
शुभम भूयात्
पंडित आचार्य विपिन कृष्ण कांडपाल
Pandit Vipin Krishna Kandpal
Monday, 24 August 2015
Puja Pandit & Priest Services in Delhi NCR & All India
03:29
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3 comments
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Friday, 6 February 2015
Gandmool Nakshtra- गंड मूल [सतइसा ] नक्षत्र विवरण
ज्योतिष में 27 नक्षत्रों में 6 नक्षत्र गंड मूल
नक्षत्रों की श्रेणी में माने गये हैं.-अश्वनी,-आश्लेषा,-मघा-
,ज्येष्ठा,-मूल और रेवती.
,ज्येष्ठा,-मूल और रेवती.
इन नक्षत्रों में उत्पन्न जातक –जातिका गंड
मूलक कहलाते हैं .इन नक्षत्रों में उत्पन्न जातक स्वयं व् कुटुम्बी जनों के लिये
अशुभ माने गये हैं.
जातो न जीवतिनरो मातुरपथ्यो भवेत्स्वकुलहन्ता |
लेकिन पहले यह जानना परम आवश्यक है कि गंड
मूल किसे कहते हैं
गंड कहते हैं –जहाँ एक राशि और नक्षत्र
समाप्त हो रहे हो उसे गंड कहते हैं .
मूल कहते हैं –जहाँ दूसरी राशि से नक्षत्र का
आरम्भ हो उसे मूल कहते हैं .
राशि चक्र और नक्षत्र चक्र दोनों में इन ६
नक्षत्रो पर संधि होती है और संधि समय को जितना लाभकारी माना गया है
उतना ही
हानिकारक भी है .संधि क्षेत्र हमेशा नाजुक और अशुभ होते हैं इसी प्रकार गंड मूल
नक्षत्र भी संधि क्षेत्र में आने से दुष्परिणाम देने वाले होते हैं और राशि चक्र
में यह स्थिति तीन बार आती है
अब यह समझने का प्रयास करे कि कैसे इन ६
नक्षत्रो को गंड मूल कहा गया है
1-आश्लेषा नक्षत्र और कर्क
राशि का एक साथ समाप्त होना और यही से माघ नक्षत्र और सिंह राशि का प्रारम्भ .
2-ज्येष्ठा नक्षत्र और
वृश्चिक राशि का समापन और यही से मूल नक्षत्र और धनु राशि का प्रारम्भ .
3-रेवती नक्षत्र और मीन
राशि का समापन और यही से अश्वनी नक्षत्र और मेष राशि का आरम्भ
तो यहाँ तीन गंड नक्षत्र
हैं –आश्लेषा ,ज्येष्ठा ,रेवती.
और तीन मूल नक्षत्र हैं –मघा,
मूल और अश्वनी
जिस प्रकार एक ऋतु का जब
समापन होता है और दूसरी ऋतु का आगमन होता है तो उन दोनों ऋतुओं का मोड स्वास्थ्य
के लिये उत्तम् नहीं माना गया है इसी प्रकार नक्षत्रों का स्थान परिवर्तन जीवन और
स्वास्थ्य के लिये हानिकारक माना गया है
इन नक्षत्रों में जिनका
जन्म हुआ हो तो उस नक्षत्र की शान्ति हेतु जप और हवन अवश्य कर लेनी चाहिए
1-अश्वनी के लिये 5000 मन्त्र जप .
2-आश्लेषा के लिये 10000 मन्त्र जप
3-मघा के लिये 10000 मन्त्र जप.
4-ज्येष्ठा के लिये 5000 मन्त्र जप.
5-मूल के लिये 5000 मन्त्र जप .
6-रेवती के लिये 5000 मन्त्र जप
इन नक्षत्रों की शान्ति हेतु ग्रह, स्व इष्ट,
कुल देवताओं का पूजन ,रुद्राभिषेक तथा नक्षत्र तथा नक्षत्र के स्वामी का पूजन
अर्चन करने के बाद दशांश हवन किसी सुयोग्य ब्राह्मण से अवश्य करवाए .
शुभम भूयात .