कुण्डली के प्रत्येक भाव अपनी अपनी दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं और इन्ही
द्वादश भावों में स्थित ग्रहों के शुभ या अशुभ
स्थिति से मनुष्य अपने जीवन काल में
सुख और दुःख का सामना करता रहता है ग्रहों की युति ,दृष्टि के अनुसार कुण्डली में
जो शुभ और अशुभ योग बनते हैं जिनके कारण व्यक्ति बुलंदियों को भी छू लेता है और जब
ग्रह स्थिति और योग अशुभ हो तो बुलंदियों को पाने वाला व्यक्ति भी दर दर भटकने
लगता है.
Astrologer- Vipin Krishna Kandpal |
ऐसे ही कुछ योगों की चर्चा यहाँ पर की जा रही है इन्हें समझने का
प्रयास करें.
आश्रय योग – कुण्डली में लग्न
भाव का मालिक चर राशि में स्थित हो और कुण्डली में अधिकतर ग्रह चर राशि में हो तो
आश्रय योग बनता है
फलश्रुति – ऐसा जातक महत्वाकांक्षी होता है तथा नाम,सम्मान प्रतिष्ठा के लिये जगह जगह भ्रमण करता है .बौद्धिक रूप से गतिशील होता है ऐसा जातक लगातार संघर्ष करता रहता है लेकिन फिर भी सफलता नही मिल पाती है.
अव योग- कुण्डली में जब लग्नेश अशुभ भाव में रहता है तब
अवयोग बनता है .
फलश्रुति-
अप्रसिद्धि रति दु:सहदैन्यं स्वल्पमायुरवमानमसद्भि
संयुत:कुचरित:कृतनु:स्याचंचलस्थितिरिहाप्यवयोगे
संयुत:कुचरित:कृतनु:स्याचंचलस्थितिरिहाप्यवयोगे
फलदीपिका के अनुसार ऐसा जातक बहुत चंचल होता है ऐसा व्यक्ति दुष्ट
लोगों के संसर्ग में रहता है तथा अपने चरित्र को भी नष्ट कर देता है तथा ऐसे जातक
के जीवन में निर्धनता बनी रहती है जातक कहीं न कहीं अपमानित होता है.
राजयोग – केतु ग्रह केन्द्र या त्रिकोण में हो या
केन्द्र या त्रिकोण के स्वामी के साथ हो तो योग कारक होता है .
फलश्रुति-
यदि केंद्रे त्रिकोणे वा निवसेतां
तमोग्रहो
नाथेनान्यतरेणापि सम्बन्धाद्ध्योग कारको.
नाथेनान्यतरेणापि सम्बन्धाद्ध्योग कारको.
ऐसा जातक उच्च पद पर आसीन होता है .जीवन में उसे सफलता ,सम्मान
,प्रतिष्ठा मिलती है या यों कहें कि वह
व्यक्ति प्रतिष्ठित होता है.
सर्वार्थ चिंतामणि के अनुसार –जो ग्रह जन्म कुण्डली में नीच का हो तथा
उसके उच्च राशि का स्वामी अथवा जिस राशि में वह वैठा है उसका स्वामी केन्द्र में
स्थित हो तो राजयोग बनता है .
नीचस्थितो जन्मनियोग्रह: स्यात्तद्राशिनाथोथ तदुच्चनाथ
सचेद्विलग्नाद्द्यदि केन्द्रवर्ती राजा भवेद धार्मिक चक्रवर्ती
सचेद्विलग्नाद्द्यदि केन्द्रवर्ती राजा भवेद धार्मिक चक्रवर्ती
पंचम भाव का मालिक गुरु से दृष्ट हो कर केन्द्र या त्रिकोण में स्थित हो तो संतान योग
बनते हैं
पंचम भाव का मालिक पंचम भाव में स्थित हो तथा गुरु से दृष्ट हो तो
गुणवान संतान का लाभ मिलता है.
आगे क्रमश...
शुभम् भूयात...
Acharya Pandit
Vipin Krishna Kandpal
Vedic Astrologer and Shrimad Bhagwat Katha Vachak
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Acharya Pandit Vipin Krishna Kandpal Ji,
ReplyDeleteNamaskar ! I have read each and every line very carefully and I really felt the tremendous amount of knowledge you have shared in this article. I thank you from the bottom of my heart for such a lovely article. I believe more people should start believing in Indian Astrology !!
Thank You.
Bengali Purohit in Bangalore