Pandit Vipin Krishna Shastri: Astrolger & Katha Vyas

Pandit Vipin Krishna Shastri-Astrolger & Katha Vyas

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Saturday 20 July 2013

शनि राहू केतु का मानव जीवन पर प्रभाव और उपरी हवा से सम्बन्ध

अक्सर हम लोग कहा करते हैं कि उपरी हवा लग गयी है. हमारे धर्म ग्रंथों में इसकी विस्तृत विवेचना की गयी है.
कुछ ग्रन्थ इन्हने बुरी आत्मा मानते हैं, लेकिन ज्योतिष के शनि, राहु, केतु विशेष रूप से उपरी हवा का कारक ग्रह माना गया है.

उपरी हवाओं का विशेष प्रभाव कुऐं, चोराहे तथा गंदे स्थानों में होता है, इसलिए ऐसी जगहों पर जाने वालों पर उपरी हवा अपना विशेष प्रभाव डालती है तथा रात और दिन के अभिजित समय (रात के १२ बजे और दिन के १२ बजे) में इनका प्रभाव विशेषरूप से द्वार के चोखट पर माना गया है.

ज्योतिष के अनुसार जब राहु, केतु और शनि का प्रभाव जातक की कुंडली में मन, शरीर और धर्म भाव पर रहता है इस स्तिथि में उपरी हवाएं सक्रिय हो जाती हैं. चन्द्रमा पर जब इन क्रूर ग्रहों का प्रभाव रहता है तब मन की स्थिरता विचलित होने लगती है क्योंकि चन्द्रमा मन का कारक है और इन क्रूर ग्रहों का प्रभाव जब मन पर पड़ता है तो मन की अस्थिरता के कारण जीवन अस्त ब्यस्त हो जाता है.

इस प्रकार की शक्तियां हमें दिखाई तो नही देती लेकिन हमारा जीवन इन अदृश्य शक्तियों के कारण डग मगाने लगता है.

इस प्रकार की बुरी शक्तियों के निवारण हेतु उपाय:


दुर्गा सप्तशती का सम्पुटित पाठ
- बजरंग बाण का पाठ
- गूगल का धूप देकर हनुमान चालीसा पाठ
- ब्यापार में समस्या हो तो- गणपति अथर्वशीर्ष का पाठ करें और ब्यापार स्थल पर एकाक्षी श्रीफल की स्थापना करें

- घर की महिलाएं यदि पीड़ित हों तो शुक्रवार को माता के मंदिर में मेहँदी चढायें

- घर में मत्स्य यन्त्र की स्थापना और नित्य पूजन करें

- स्फटिक की माला धारण करें

शुभम भूयात

आचार्य विपिन कृष्ण शास्त्री
वेदपाठी, ज्योतिषी एवं कथा वाचक
०९०१५२५६६५८  


Pandit Vipin Krishna Shastri

Ved Pathi, Astrologer and Katha Vachak

Wednesday 17 July 2013

मानव जीवन पर ग्रह राशियों का नकारात्मक प्रभाव -ज्योतिष कुंडली

ग्रह जब भ्रमण करते हुए संवेदनशील राशियों के अंगों से होकर गुजरता है तो वह उनको नुकसान पहुंचाता है। नकारात्मक ग्रहों के प्रभाव को ध्यान में रखकर आप अपने भविष्य को सुखद बना सकते हैं।

वैदिक वाक्य है कि पिछले जन्म में किया हुआ पाप इस जन्म में रोग के रूप में सामने आता है। शास्त्रों में बताया है--पूर्व जन्मकृतं पापं व्याधिरूपेण जायते- अत: पाप जितना कम करेंगेरोग उतने ही कम होंगे। अग्निपृथ्वीजलआकाश और वायु इन्हीं पांच तत्वों से यह नश्वर शरीर निर्मित हुआ है।

इन्हीं में मेष
सिंह और धनु अग्नि तत्ववृषकन्या और मकर पृथ्वी तत्वमिथुनतुला और कुंभ वायु तत्व तथा कर्कवृश्चिक और मीन जल तत्व का प्रतिनिधित्व करते हैं। कालपुरुष की कुंडली में मेष का स्थान मस्तकवृष का मुखमिथुन का कंधे और छाती तथा कर्क का हृदय पर निवास है जबकि सिंह का उदर (पेट)कन्या का कमरतुला का पेडू और वृश्चिक राशि का निवास लिंग प्रदेश है। धनु राशि तथा मीन का पगतल और अंगुलियों पर वास है।

इन्हीं बारह राशियों को बारह भाव के नाम से जाना जाता है। इन भावों के द्वारा क्रमश: शरीर
धनभाईमातापुत्रऋण-रोगपत्नीआयु,धर्मकर्मआय और व्यय का चक्र मानव के जीवन में चलता रहता है। इसमें जो राशि शरीर के जिस अंग का प्रतिनिधित्व करती हैउसी राशि में बैठे ग्रहों के प्रभाव के अनुसार रोग की उत्पत्ति होती है। कुंडली में बैठे ग्रहों के अनुसार किसी भी जातक के रोग के बारे में जानकारी हासिल कर सकते हैं।

कोई भी ग्रह जब भ्रमण करते हुए संवेदनशील राशियों के अंगों से होकर गुजरता है तो वह उन अंगों को नुकसान पहुंचाता है। उदाहरण के लिए जब सिंह राशि में शनि और मंगल चल रहे हों तो मीन लग्न मकर और कन्या लग्न में पैदा लोगों के लिए यह समय स्वास्थ्य की दृष्टि से अच्छा नहीं कहा जा सकता।


अब सिंह राशि कालपुरुष की कुंडली में हृदय
पेट (उदर) के क्षेत्र पर वास करती है तो इन लग्नों में पैदा लोगों को हृदयघात और पेट से संबंधित बीमारियों का खतरा बना रहेगा। इसी प्रकार कुंडली में यदि सूर्य के साथ पापग्रह शनि या राहु आदि बैठे हों तो जातक में विटामिन ए की कमी रहती है। साथ ही विटामिन सी की कमी रहती है जिससे आंखें और हड्डियों की बीमारी का भय रहता है।

चंद्र और शुक्र के साथ जब भी पाप ग्रहों का संबंध होगा तो जलीय रोग जैसे शुगर
मूत्र विकार और स्नायुमंडल जनित बीमारियां होती है। मंगल शरीर में रक्त का स्वामी है। यदि ये नीच राशिगतशनि और अन्य पाप ग्रहों से ग्रसित हैं तो व्यक्ति को रक्तविकार और कैंसर जैसी बीमारियां होती हैं। यदि इनके साथ चंद्रमा भी हो जाए तो महिलाओं को माहवारी की समस्या रहती है जबकि बुध का कुंडली में अशुभ प्रभाव चर्मरोग देता है।


चंद्रमा का पापयुक्त होना और शुक्र का संबंध व्यसनी एवं गुप्त रोगी बनाता है। शनि का संबंध हो तो नशाखोरी की लत पड़ती है। इसलिए कुंडली में बैठे ग्रहों का विवेचन करके आप अपने शरीर को निरोगी रख सकते हैं। किंतु इसके लिए सच्चरित्रता आवश्यक है। आरंभ से ही नकारात्मक ग्रहों के प्रभाव को ध्यान में रखकर आप अपने भविष्य को सुखद बना सकते हैं।


आचार्य विपिन कृष्णा शास्त्री 
ज्योतिषी, वेदपाठी एवं कथा वाचक 
09015256658, 09968322014