Monday 7 January 2013

Jyotish Shastra-ज्योतिष शास्त्र

आकाशस्थ ग्रहों की विशेष गति व् स्तिथि से भौतिक सृष्टि पर पड़ने वाले परिणामों का विशेष विवेचन करना ही ज्योतिष शास्त्र का उद्देश्य है .

ज्योतिष शास्त्र के मुख्य रूप से दो भाग है .

    १-ग्रह ज्योतिष
    २-फलित ज्योतिष

इन दो भागों का वर्णन तीन विभागों में किया गया है

     १-सिद्धांत
     २-संहिता
     ३-जातक

ग्रह ज्योतिष में सिद्धांत और संहिता का वर्णन है और फलित ज्योतिष में जातक विभाग का वर्णन है .

                   सिद्धांत संहिता होरा रूपंस्कंध  त्रयात्मकम
                   वेदस्य निर्मलं चक्षु:ज्योति:शास्त्र मनुत्तमम.

वेद का निर्मल चक्षु ऐसा है जो ज्योतिष शास्त्र सिद्धांत ,संहिता और होरा इन तीन विभागों से युक्त है       

 १-सिद्धांत:
ग्रहों का भ्रमण ,स्पष्ट गति व् स्तिथि ,अयन,योग,ग्रहण व् आकाश में कोन सा ग्रह किस समय किस गति से भ्रमण करता है यह सिद्धांत विभाग से स्पष्ट होता है .इसीलिए इस विभाग को गणित भी कहते है .

२-संहिता:

ग्रह स्तिथि परिणाम भिन्न समय पर भिन्न देशों पर पड़ने वाले शुभाशुभ परिणामों का वर्णन जैसे-पर्जन्य ,दुष्काल ,रोग,भूकंप,युद्ध,राज्यक्रांति का स्पष्टीकरण संहिता के अंतर्गत है.

३-जातक—

मनुष्य के जन्म समय,वर्ष,अयन,ऋतु,मास,ग्रह,राशि आदि के आधार पर मनुष्य के आयुष्य में सुख-दु:ख ,प्रकृति व् प्रवृति रूप रंग जो प्राप्त होता है उसका वर्णन इस विभाग में किया जाता है .  


आचार्य विपिन कृष्णा शास्त्री
०-९९६८३२२०१४ 







1 comments: