Thursday 27 August 2015

ज्योतिष में केतु ग्रह का जातक पर प्रभाव


केतु एक छाया ग्रह है केतु मंडल ध्वजाकार है मनुष्य के शरीर में केतु अग्नि तत्व का प्रतिनिधित्व करता है केतु ग्रह के सूर्य और चन्द्रमा शत्रु हैं.

जन्म कुण्डली में प्रथम लग्न भाव ,षष्ठम भाव ,अष्ठम भाव ,और एकादश भाव में केतु ग्रह को शुभ नहीं माना जाता है. कुण्डली में केतु ग्रह के द्वारा जब जातक पीड़ित रहता है तो जातक के व्यवहार में विकारता दिखाई देने लगती है जातक के मन दुराचार की भावना प्रबल हो जाती है, वात  कफ जन्य रोग से जातक पीड़ित रहता है. कुण्डली में जिस भी भाव में केतु रहता है उसी भाव के अनुरूप केतु अपना अच्छा और बुरा प्रभाव अवश्य डालता है. जीवन को संघर्षमय बना देता है. यह एक ऊष्ण और तमोगुणी ग्रह है और केतु की मीन और धनु उच्च राशियाँ हैं. केतु के कुप्रभाव से जोड़ों में दर्द,संतान कष्ट,पारिवारिक कलह,पेशाब संबधित विकार से जातक पीड़ित रहता है.

कुण्डली में केतु और सूर्य ग्रह की युति होने से व्यवसाय में उतार चढ़ाव देखने को मिलता है. जातक के पिता के 
स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है. यश सम्मान, प्रतिष्ठा और सुख में कमी आती है.

चन्द्रमा और केतु की युति होने से मानसिक तनाव बढ़ता है.

केतु और मंगल की युति होने से जातक के अंदर क्रोध की अधिकता, हिसा की प्रवृति दिखाई देने लगती है.

केतु और बुध की युति होने से जातक के अंदर कपट की भावना बढ़ने लगती है और जातक धर्म कर्म से हीन होकर 
नास्तिक बन जाता है.

केतु और गुरु की युति होने से जातक के नास्तिकता बढ़ने लगती है और जातक के अंदर सत्वगुण में कमी आने लगती है.

केतु और शुक्र की युति होने से जातक के अंदर  स्त्री लोलुपता की भावना बढ़ने लगती है.

केतु और शनि की युति होने से जातक के अंदर हिसक प्रवृत्ति बढ़ने लगती है और जातक आत्मघाती भी बनने लगता है.

इसलिए केतु ग्रह से यदि कोई पीड़ित हो तो किसी अच्छे विद्वान से कुण्डली का विश्लेषण अवश्य करवाएं

केतु ग्रह की शान्ति के लिये उपाय


केतु ग्रह के मन्त्र का अवश्य जाप करें. हनुमान जी की उपासना करें. मंगलवार का व्रत रखें अन्यथा सर्वारिष्ट शान्ति हेतु शिवार्चन और महा मृत्युंजय का जाप करें.

शुभम भूयात् 
पंडित आचार्य विपिन कृष्ण कांडपाल
Pandit Vipin Krishna Kandpal

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