Thursday 8 August 2013

Shani Sade Sati-शनि ग्रह की साढ़ेसाती

शनि ग्रह प्रत्येक राशि में ढाई वर्ष भ्रमण करने पर अगली राशि में प्रवेश करता है इस तरह जन्म राशि के द्वादश भाव में जिस दिन शनि प्रवेश करता है उसी दिन से शनि की साढ़ेसाती प्रारंभ हो जाती है .उस राशि का भ्रमण ढाई वर्ष पूर्ण करके जन्म कुण्डली में चन्द्रमा जिस राशि में है उस राशि में प्रवेश करने पर दूसरा ढाई वर्ष  और उससे अगली राशि में जब प्रवेश करे उसके ढाई वर्ष के गति से साढ़ेसात वर्ष का भ्रमण -इसी को साढ़ेसाती कहते हैं.

   प्रत्येक राशि में शनि ढाई वर्ष की गति से बारह राशि का भ्रमण ३० वर्ष में पूरा करता है 
 
जन्म कुण्डली में शनि यदि अशुभ फलदाई हो और अपने साढ़ेसाती के काल में अशुभ ग्रहों से युक्त या दृष्ट हो या जन्म गौचर ग्रह हो तो शनि मनुष्य को भयानक अशुभ फल देता है जिसका उसे आजन्म विस्मरण होना असंभव है.भले ही वह नास्तिक मत का क्यों न हो परन्तु शनि की साढ़ेसाती आरम्भ होते ही अपने शुभ या अशुभ फल से उसके परिस्थिति में परिवर्तन निर्माण करता है और अन्त में वह विश्वास करने के लिए वाध्य होता है .

  और यदि कुण्डली में शनि शुभ हो तो वह अपने साढ़ेसाती के काल में निर्धन को धनी भी बनाकर पर्वत के शिखर पर बैठते हैं ऐसे कई उदाहरण है .
 
समस्त ग्रहों में शनि ग्रह इतना प्रबल शक्तिशाली है कि वह अपने शुभ-अशुभ का परिचय व् प्रत्यक्ष प्रमाण मानवीय प्राणी को ही नहीं अपितु ईश्वरीय विभूति ,महर्षि देवता व् राजाओं को भी दिखाया है .

शनि की साढ़ेसाती के काल में भगवान राम को वनवास करना पड़ा .परम विद्वान ज्योतिषी रावण को सीताहरण की दुर्बुद्धि देकर यमयातना भोगने को बाध्य किया .भगवान श्री कृष्ण को स्यमन्तक मणि का कलंक लगाया .पांडवो को वनवास दिया ,भगवान शंकर को छणभर के लिए कैलाश में छिपने के लिए बाध्य किया  ऐसे अनेक उदाहरण हैं .

शनि ग्रह अपना अशुभ फल दिखाने  के पूर्व ही शूरों की शूरता ,बीरों की बीरता ,अधिकारियों की सत्ता ,विद्वानों की बुद्धिमता ,धनिको का धन  सब कुछ हरण कर मनुष्य को विचार शून्य कर देता है .

इसके विपरीत यदि जन्म कुण्डली में शनि शुभफलदाई है तो शनि अपने साढ़ेसाती के काल में मनुष्य को सुख व् ऐश्वर्य के शिखर पर चढा कर श्रेष्ठ बना देता है .
             शुभम भूयात
    
Acharya Vipin Krishna
Jyotishi, Vedpathi & Katha Vachak
West Vinod Nagar Delhi
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